बेपनाह मोहब्बत का एक ही उसूल है,
मिले या ना मिले तू हर हाल मे कबूल है।
सब पूछते हैं मुझ से क्यों रातों को मैं जागता हूँ और दिन में खोया हुआ सा रहता हूँ, चुप रहूँ या कह दूँ अब सब से कि इस बेचैन दिल की वजह तुम हो।
नींद से क्या शिकवा जो आती नहीं रात भर,
कसूर तो उस चेहरे का है जो सोने नही देता।
तेरा अक्स गढ़ गया है आँखों में कुछ ऐसा,
सामने खुदा भी हो तो दिखता है हू-ब-हू तुझ जैसा।
मुझ से रूठकर वो खुश है तो शिकायत ही कैसी,
अब मैं उनको खुश भी ना देखूं तो हमारी मोहब्बत ही कैसी।
मिले या ना मिले तू हर हाल मे कबूल है।
सब पूछते हैं मुझ से क्यों रातों को मैं जागता हूँ और दिन में खोया हुआ सा रहता हूँ, चुप रहूँ या कह दूँ अब सब से कि इस बेचैन दिल की वजह तुम हो।
नींद से क्या शिकवा जो आती नहीं रात भर,
कसूर तो उस चेहरे का है जो सोने नही देता।
तेरा अक्स गढ़ गया है आँखों में कुछ ऐसा,
सामने खुदा भी हो तो दिखता है हू-ब-हू तुझ जैसा।
मुझ से रूठकर वो खुश है तो शिकायत ही कैसी,
अब मैं उनको खुश भी ना देखूं तो हमारी मोहब्बत ही कैसी।
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